Shani Dev Temple CG: हिन्दुस्तान में हफ्ते के सातो दिन किसी न किसी देवी – देवता का दिन होता है। ऐसे में शनिवार भगवान शनिदेव को समर्पित है। इस दिन शनिदेव के मंदिर में भक्तो का तांता लगता है। वैसे तो देशभर में शनिदेव के कई प्राचीन और प्रसिद्ध मंदिर हैं, लेकिन आज हम एक ऐसे मंदिर के बारें में बताएंगे जहां शनिदेव अपनी पत्नी के साथा विराजमान हैं।

Shani Dev Temple CG: कहां हैं यह मंदिर?
छत्तीसगढ़ के कवर्धा जिले में भोरमदेव मार्ग से 15km की दूरी पर एक गांव छपरी है, जहां से 500KM दूर पर मड़वा महल है। वहां के टेढ़े – मेढ़े पथरीले रास्तों को पार करते हुए करियाआमा गांव पड़ता है, वहीं यह मंदिर विराजमान हैं।

इस मंदिर की मान्यता…
शनिवार के दिन पूजा करने का विशेष महत्व है, वैसे तो कई मंदिरों में महिलाओं का जाना वर्जित है, लेकिन इस मंदिर में पति – पत्नी का साथ में पूजा करना बहुत शुभ होता है, जो भी दंपत्ति साथ में भगवान शनिदेव के सामने माथा टेकते है, और उनकी पूरी श्रद्धा के साथ पूजा करते है। उनकी हर मनोकामनाएं पूरी होती हैं। और उनका विवाहिक जीवन खुशहाली से बितता है।
Shani Dev Temple CG: कैसे हुई मंदिर की स्थापना…
स्थानीय लोगों का मानना है कि, यह मंदिर पांडवकाल का है, इस मंदिर की स्थापना पांडवों ने की थी, जब पांडव वनवास काट रहे थे, तो उन लोगो ने कुछ समय भोरमदेव के पास जंगल में बिताएं थे। तब भगवान कृष्ण ने पांडवों को श्रीकृष्ण की प्रतिमा स्थापना करने को कहा था। तभी पांडव ने यहां भगवान शनिदेव की स्थापना की।

देवी स्वामिनी कैसे हुई विराजमान…
वहां के स्थानीय लोग बताते हैं, कि वो सालो से करियाआमा इस मंदिर में आते थे, और श्रद्धालु यहां तेल चढ़ाते थे, तो भगवान के ऊपर काफी दूल – मिट्टी जमा हो गई। और जब मूर्ति को साफ किया गया तो वहां भगवान शनिदेव के साथ उनकी पत्नी देवी स्वामिनी विराजमान मिली।
Shani Dev Temple CG: भगवान शनि को चढ़ाएं ये वस्तुएं…
भगवान शनिदेव को विशेष रुप से सरसों का तेल, काले तिल, गुड़, अपराजिता के फूल और शमी के पत्ते चढ़ाए जाते है, और नीले रंग की वस्तुएं विशेष रुप से चढ़ाई जाती है। और जब भगवान को कोई भक्त पूरी श्रद्धा से ये वस्तुएं भगवान को अर्पित करते है, तो भगवान उनकी सारी मनोकामनाएं पूरी करते हैं।
पहले इस मंदिर का नाम ओंगनपाट के नाम से था प्रसिद्ध…
बताया जाता है पुराने समय में यह मंदिर ओंगनपाट के नाम से प्रसिद्ध था, यहां बैगा समुदाय के लोग इस मंदिर को ओंगनपाट कहते थे, जिसका अर्थ तेल से भरे बांस के टुकड़े से होता था। वे बैलगाड़ी के पहियों पर तेल डालने के बाद इस तेल को शनिदेव पर चढ़ाते थे, ताकि बैलगाड़ी आगे बढ़ सके। क्योकि देवालय के करीब आते ही बैलगाड़ी रुक जायै करती थी।