Ratlami Sev: पूरी दुनिया में भारत की अलग पहचान हैं जो अपनी संस्कृति और अपनी परंपराओं को बरकरार रखे हुए और भारत की इसी खूबसूरती को देखने के लिए दुनिया भर से लोग यह आते हैं और यहाँ की संस्कृति-परंपरा और खास व्यंजन को लुफ़त उठाते हैं और देश का व्यजन के स्वाद दुनिया के कोने कोने में अधिकतर लोगों की जुबान पर चढ़ा हुआ हैं.

हमारे देश भारत में न केवल भाषा, संस्कृति ही नही बल्कि यहाँ के खानपान में भी अनेकों स्वाद चखने को मिलते हैं और भारत देश की हर शहर और राज्य की एक अलग ही विशेषता है। यूं तो काफी कुछ मशहूर हैं लेकिन अभी अब बात करेंगे देश की दिल में बसे मध्य प्रदेश की रतलामी सेव की जिसका स्वाद शायद ही किसी न चखा हों तो चलिए बताते हैं आपको इसका इतिहास…
देश और विदेश में मशहूर हैं मालवा के खानपान
घी की महक के साथ दालबाटी से लेकर समोसा और कचोड़ी तक हर व्यंजन का अपना एक स्वाद हैं जो जुबान को लपलपा देता हैं और रतलाम के प्रसिद्ध रतलामी सेव तो पूरे विश्व में अपनी अलग पहचान बना चुके हैं, इसलिए रतलामी सेव का नाम सुनते ही लोगों की जुबान पर इसका एक अलग ही स्वाद आ जाता हैं और शायद ही कोई ऐसा हो जिसने इन सेव का स्वाद न लिया हों |
तकरीबन 200 साल पुराना हैं रतलामी सेव का इतिहास
खाने में स्वाद बढ़ाने वाला रतलामी सेव खाने में थोड़ा तीखा लेकिन मजेदार स्वादिष्ट होता हैं और इस सेव में अन्य कई तरह के फ्लेवर भी मिलते हैं जिसमे
काली मिर्च,
लॉंग,
और बेसन
के साथ अन्य मसले शामिल हैं
रतलामी सेव हर कोई अपने अंदाज में खाता हैं जैसे कोई चाय के साथ तो कोई पोहे में डालकर स्वाद लेता हैं और कई तो थाली में भी रतलामी सेव को शामिल कर लेते हैं |
प्रसिद्ध होने के बाद, लॉंग के सेव या इन्दौरी सेव के नाम से भी जानते हैं
इतने प्रसिद्ध होने के बाद रतलामी सेव को कई लोग लॉंग के सेव या इन्दौरी सेव के नाम से भी जानते हैं लेकिन शायद आपको न मालूम हैं की रतलामी सेव की शुरुवात कैसे तो चलिए हम बताते हैं |
200 साल पुराना हैं इतिहास
रतलामी सेव करीब 200 साल पुराना हैं लेकिन एक रोचक बात ये हैं की बहुत ही कम लोग जानते होंगे की रतलामी सेव आदिवासी और मुगलों के दशक से जुड़ा हुआ हैं,
ये बात हैं 19वीं सदी की…
जब मुग़ल शाही परिवार रतलाम आए तो और उन्होंने यहाँ पर गेहूं से बनी सेवइयां खाने की इच्छा जाहीर की जो की थोड़ा मुश्किल था चूंकि उस समय रतलाम में गेहूं नही उगाया जाता था,
फिर मुगलों ने यहाँ की भील जाती को को बेसन की सेवइयां बनाने को कहां तब इस प्रकार से रतलामी सेव की शुरुवात हुई |
रतलामी सेव का पुराना नाम ये था…
रतलाम की भील जाती के द्वारा बनाए जाने वाले इस व्यंजन को भीलड़ी सेव भी कहा जाता था .
भीलड़ी सेव को रतलामी सेव से जाना गया
जैसे जैसे समय बढ़ता गया तो रतलाम के रहवासियों ने इसके साथ कई अलग अलग प्रयोग किए जैसे मसालों मिलाकर इसको बनाना शुरू किया और फिर क्या देखते ही देखते भीलड़ी सेव को रतलामी सेव से जाना गया.
कई प्रकार के फ्लेवर लोकप्रिय हैं.
प्रदेश से देश और विदेश में रतलामी सेव और इसके कई प्रकार के फ्लेवर को लोकप्रियता मिली जो कई वर्अषो से बरकार हैं.
मार्केट में इतने फ्लेवर हैं मौजूद
कभी मार्केट में रतलामी सेव कई फ्लेवर में मौजूद हैं जैसे
लौंग, हींग, लहसुन, काली मिर्च, पाइनएप्पल, टमाटर, पालक, पुदीना, पोहा, फ्लेवर तक शामिल हैं।
FAQ
मप्र के किस जिले कि सेव को मिला जीआई टैग मिला ?
मध्य प्रदेश के रतलामी सेव जो की देश-दुनिया में बड़े ही लोकप्रिय हैं.
किस वर्ष मिला gi टैग ?
साल 2017 में इसे जीआई टैग दिया गया।
क्या होता हैं जीआई टैग ?
जीआई टैग लेबल किसी क्षेत्र के खास व्यंजन या उत्पाद को पहचान देता हैं |
निष्कर्ष
रतलामी सेव मालवा के लोगों के खानपान का एक हिस्सा बन चुका हैं और इसी वजह से यहां के लोगों का भोजन सेव के बिना अधूरा रहता है। इस व्यंजन की बढ़ती डिमांड की वजह से इस समय रतलाम में सेव बनाने और बेचने वाली तकरीबन 500 छोटी-बड़ी दुकानें मौजूद हैं