
चंदेर की फेमस साड़ियां का इतिहास और भगवान श्री कृष्ण से क्या है कनेक्शन
मध्य प्रदेश हमेशा किसी न किसी चर्चा का विषय बना रहता हैं और अभी मध्य प्रदेश में कुछ ऐसी जगह हैं जहां मूवी से लेकर वेब सीरीज तक शूट हो रही हैं और कई जगहों में से फेमस हैं एक जगह जिसका नाम हैं चँदेरी आइए जानते हैं चँदेरी की साड़ियों का इतिहास वही आपको बताएंगे की श्री कृष्ण भगवान से क्या हैं चँदेरी का कनेक्शन
बेहद ही खूबसूरत और इतिहास…

चँदेरी अपने आप में बेहद ही खूबसूरत और इतिहास की नजरिए से अच्छी जगह हैं जहां कई मूवी और वेब सीरीज भी शूट की जाती हैं
कहते हैं कि…
चँदेरी की दीवानी ज्यादातर महिला होती हैं क्यूंकी इतिहास से चली या रही हैं चँदेरी की साड़ी जो की महिला की सुंदरता में चार चाँद लगा देती हैं|
चँदेरी की साड़ी की मुलायम रेशमी फिनिशिंग और आकर्षित करने वाली कड़ाई मानो की हर धागे में इतिहास को समर्पित हो तो चलिए जानते हैं चँदेरी का इतिहास |
मध्य प्रदेश के चंदेरी का इतिहास
चंदेरी मध्यप्रदेश के अशोकनगर जिले में है। चंदेरी साड़ियां भारत के साथ-साथ विदेश में भी काफी लोकप्रिय हैं।
यहां की कशीदाकारी साड़ियों के लिए चंदेरी की पहचान है और आपको बताते की चंदेरी के फेब्रिक एवं डिजाइन अपने आप में अनूठे हैं।
चंदेरी साड़ियों की विशेषता
यहाँ की साड़ियों की जो हैं विशेषता वो इनके हल्के, महीन बनावट और उत्तम विषयासक्त अनुभव है। चंदेरी वस्त्र का उत्पादन पारंपरिक सूती धागे में रेशम और सुनहरी जरी में बुनाई करके किया जाता है।
किताब में जिक्र..

अगर आप ‘सर्फेस ऑर्नमेंटशन ऑफ फेब्रिक’ किताब को पढ़ेंगे तो पाएंगे की इस किताब में भी चनंदेरी के इतिहास का जिक्र हैं ये किताब डॉ. डॉली रानी, डॉ. भावना अरोरा और डॉ. प्रियंका श्रीवास्तव के द्वारा लिखी गई हैं आपको बताते हैं की इस किताब में लिखा है कि बुंदेलखंड और मालवा की सीमा से लगा ये शहर बुनकरों की नगरी है।
श्री कृष्ण भगवान से क्या है चंदेरी का कनेक्शन
रामायण और महाभारत काल में भी चंदेरी का उल्लेख किया गया है
ऐसा कहा जाता है की..
” वैदिक युग में भगवान श्रीकृष्ण की बुआ के पुत्र शिशुपाल ने इसकी खोज की थी”

लिखित प्रमाण 11 वीं शताब्दी में भी मिलते हैं।
चंदेरी साड़ी की परम्परा 13वीं शताब्दी में 1350 के आसपास कोली बुनकरों द्वारा शुरू हुई थी ऐसा भी इतिहास में कहा जाता है |
17 वीं सदी में राजघरानों की स्त्रियों के लिए बड़ौदा, नागपुर और ग्वालियर जिले में बसने वाले बुनकर चंदेरी साड़ियां बुना करते थे। 17वीं सदी में कपास के अधिक महीन धागों से चंदेरी साड़ियों की बुनाई की जाती थी।
मुगलकाल ढाका से बारीक मलमल के रेशे इन साड़ियों को बनाने के लिए मंगाए थे। ऐसा भी बताया जाता है कि,,,,
यह साड़ी इतनी बारीक होती थी कि एक पूरी साड़ी को आप अपनी एक मुट्टी के समा सकते हों|
राजघरानों की स्त्रियों केसर के रंग से साड़ियों की धागे रंगवाती थी

प्राचीन काल में राजघरानों की स्त्रियां केसर से निकले हुए रंग से अपनी साड़ियों के धागों को रंगवाती थीं, क्यूंकी केसर के रंग से बुने धागे की साड़ियों को पहनने के बाद उनमें से केसर की हल्की हल्की खुशबू आती रहती थी।
लगभग 1890 में शुरू हुआ था चंदेरी फैब्रिक में बदलाव क्यूंकी उस समय बुनकर हाथ की बजाए मिलमेड यार्न से कपड़ा बुनने लगे थे। कपड़े को पहले से मजबूत करने के लिए 1970 के करीब वीवर्स ने तानेबाने में ताना कॉटन का और बाना सिल्क का रखा शुरू कर दिया था|
चंदेरी साड़ी के जो पैटर्न काफी पॉपुलर हुए वो थे (नलफर्मा, डंडीदार, चटाई, जंगला और मेहंदी वाले हाथ जैसे पैटर्न)। चंदेरी फैब्रिक को 2004 में जीआई टैग मिला था।
ऐसा बताया जाता हैं की 3 तरह की कपड़ों से चंदेरी साड़ी को बनाया जाता हैं
शुद्ध रेशम, चंदेरी कपास और रेशम कपास इन तीनों से चंदेरी साड़ी को बनाया जाता हैं। ये साड़ियां भारत में अपने सोने और चांदी के ब्रोकेड या जरी, बढ़िया रेशम और भव्य कढ़ाई के लिए जानी जाती हैं।
कलर कॉम्बिनेशन भी गजब
चंदेरी साड़ियों के कलर कॉम्बिनेशन में बैकग्राउंड और बॉर्डर का विशेष ध्यान में रखकर बनाया जाता है| आमतौर पर केसरिया, लाल, मैरून, गुलाबी, बादामी, मोरगर्दनी और तोतापंखी रंगों का इस्तेमाल साड़ियों में होता है। गंगा-जमुना नाम से जानी जाती हैं हलके और गहरे रंग से बुनी जाने वाली साड़ियां |
FAQ:-
1. चंदेरी मध्यप्रदेश के किस जिले में है?
– चंदेरी मध्यप्रदेश के अशोकनगर जिले में है
2. चंदेरी वस्त्र का उत्पादन किससे होता हैं ?
– चंदेरी वस्त्र का उत्पादन सूती धागे में रेशम और सुनहरी जरी से होता हैं।
3. चनंदेरी के इतिहास का जिक्र किस किताब मे हैं ?
- चनंदेरी के इतिहास का जिक्र हैं ये किताब डॉ. डॉली रानी, डॉ. भावना अरोरा और डॉ. प्रियंका श्रीवास्तव के द्वारा लिखी गई हैं
Read More:- नंदी रात में कही चले जाते थे – महेश्वर काशी विश्वनाथ मंदिर