Bastar Deity Court Tradition: बस्तर अंचल..छत्तीसगढ़ का यह हरा-भरा और रहस्यमयी क्षेत्र, हमेशा से अपनी अनोखी सांस्कृतिक परंपराओं के लिए जाना जाता रहा है। केशकाल, मांझीनगढ़ और कारी पानी-कुर्सी घाट में बस्तर की आस्था और परंपरा का अद्भुत नजारा देखने को मिलता है। यहां हर साल देवी-देवताओं का जातरा और अदालत लगती है, जिसमें इंसानों की तरह देवी-देवताओं पर भी आरोप-प्रत्यारोप लगाए जाते हैं, और फैसले सुनाए जाते हैं।
देवी-देवताओं की अदालत
यह परंपरा न केवल बस्तर की आदिवासी संस्कृति का प्रतीक है, बल्कि सामाजिक न्याय और सामुदायिक एकता का भी उदाहरण प्रस्तुत करती है। हजारों भक्तों की भीड़, जंगलों और पहाड़ों के बीच उमड़ती है। जिससे एक आध्यात्मिक माहौल का निर्माण होता है। इस जातरा में दूर-दराज के गांवों से देवी-देवता अपने पुजारियों, मांझी-मुखियाओं और भक्तों के साथ पहुंचते हैं।

जातरा का ऐतिहासिक महत्व
कहा जाता है कि इस परंपरा की शुरुआत बस्तर राजघराने के समय हुई थी। बस्तर के राजा काकतिया वंश के शासकों ने इस जातरा को औपचारिक रूप दिया था, ताकि देवी-देवताओं के माध्यम से जनता के विवादों का निपटारा हो सके। यह परंपरा 18वीं शताब्दी से चली आ रही है, जब राजा ने देवताओं को न्यायिक अधिकार प्रदान किए थे। आज भी यह जातरा बस्तर की लोकतांत्रिक भावना को जीवंत रखता है, जहां मानवीय अदालतों के अलावा दिव्य अदालतें भी लगाई जाती हैं।
एक अनोखी न्याय प्रक्रिया
जातरा के मुख्य आकर्षण के रूप में देवी-देवताओं की अदालत लगाई जाती है, जो इंसानी अदालतों से बिल्कुल अलग है। यहां देवताओं को मानवीय रूप में न्यायाधीश के रूप में स्थापित किया जाता है। पुजारी या मांझी देवताओं के माध्यम से बोलते हैं, और आरोप-प्रत्यारोप की प्रक्रिया चलती है। यदि कोई देवता किसी अन्य देवता पर आरोप लगाता है, जैसे कि किसी गांव में प्राकृतिक आपदा या बीमारी का कारण बताते हुए, तो अदालत में बहस होती है। फैसले सुनाए जाते हैं, जो कभी बलि, कभी पूजा-अर्चना या कभी सामुदायिक कार्य के रूप में होते हैं। इस अदालत में शामिल होने वाले भक्त मानते हैं कि देवताओं के फैसले सर्वोच्च होते हैं और इन्हें मानने से समस्याओं का समाधान हो जाता है। दूर-दराज के गांवों से आए लोग यहां अपनी शिकायतें रखते हैं, और देवताओं के माध्यम से न्याय की उम्मीद करते हैं।

Bastar Deity Court Tradition: अदालत की प्रक्रिया
अदालत की प्रक्रिया में पुजारी ट्रांस में चले जाते हैं और देवताओं की आवाज बन जाते हैं। आरोप लगाने वाले पक्ष अपनी बात रखते हैं, जबकि बचाव पक्ष प्रत्यारोप करता है। फैसला सुनाने के बाद, सभी पक्ष स्वीकार करते हैं, जो बस्तर की एकजुटता को दर्शाता है। इस परंपरा से आदिवासी समुदायों में विवादों का शांतिपूर्ण समाधान होता है, और आधुनिक न्याय व्यवस्था के साथ यह पूरक भूमिका निभाती है।
जातरा स्थल पर चढ़ाए जाने वाला भोग
जातरा के दौरान भक्त देवी-देवताओं को प्रसन्न करने के लिए विभिन्न प्रकार की चढ़ावाएं अर्पित करते हैं। मुख्य रूप से मुर्गे, बकरे या अन्य पशुओं की बलि चढ़ाई जाती है, जो देवताओं को शांत करने का माध्यम मानी जाती है। इसके अलावा, फल, फूल, नारियल, दूध और अनाज जैसी शुद्ध वस्तुएं भी चढ़ाई जाती हैं। कुछ स्थानों पर विशेष रूप से शहद और जड़ी-बूटियां अर्पित की जाती हैं, जो जंगलों से प्राप्त होती हैं।कुल मिलाकर, ये चढ़ावाएं आस्था के साथ-साथ बस्तर की जैव-विविधता को भी संरक्षित रखने में सहायक हैं।

डॉक्टर खान देव की पूजा
जातरा स्थल पर डॉक्टर खान देव की भी पूजा होती है, जो बस्तर की लोक संस्कृति का अनूठा पहलू है। डॉक्टर खान देव को स्वास्थ्य और रक्षा के देवता के रूप में पूजा जाता है। मान्यता है कि वे बीमारियों से रक्षा करते हैं और आपदाओं से बचाते हैं। पुजारी डॉक्टर खान देव के माध्यम से भक्तों की बीमारियों का निदान करते हैं और उपचार सुझाते हैं। यह परंपरा आदिवासी चिकित्सा पद्धति से जुड़ी हुई है, जहां पारंपरिक ज्ञान को देवता के नाम से संरक्षित किया जाता है। डॉक्टर खान देव की पूजा से न केवल शारीरिक स्वास्थ्य की कामना की जाती है, बल्कि मानसिक शांति भी प्राप्त होती है।
डॉक्टर खान देव पूजा की विधि
Bastar Deity Court Tradition: पूजा में हवन और मंत्रोच्चार प्रमुख होते हैं, साथ ही भक्त अपनी स्वास्थ्य संबंधी समस्याएं रखते हैं। यह जातरा का अभिन्न अंग बन चुका है।