Narayanpur Shiv Temple: छत्तीसगढ़ के बलौदाबाजार जिले में एक ऐसा प्राचीन मंदिर है, जो न केवल अपनी स्थापत्य कला के लिए प्रसिद्ध है, बल्कि एक अनोखी और सदियों पुरानी परंपरा के लिए भी जाना जाता है। यह है नारायणपुर गांव का शिव मंदिर, जहां भाई और बहन का एक साथ प्रवेश कर भगवान शिव के दर्शन करना वर्जित माना जाता है। यह मान्यता इतनी गहरी है कि स्थानीय लोग आज भी इसे पूरी आस्था और श्रद्धा के साथ निभाते हैं।

नारायणपुर शिव मंदिर का महत्व
नारायणपुर शिव मंदिर बलौदाबाजार जिले के कसडोल क्षेत्र में महानदी के किनारे स्थित है। इस मंदिर की वास्तुकला और नक्काशी इसे एक विशेष स्थान प्रदान करती है। मंदिर का निर्माण प्राचीन काल में हुआ माना जाता है, और इसकी दीवारों पर बनी नक्काशी और मूर्तियां उस समय की कला और संस्कृति की झलक दिखाती हैं। मंदिर के गर्भगृह में स्थापित शिवलिंग और इसके आसपास की सजावट भक्तों को आकर्षित करती है। स्थानीय लोगों के लिए यह मंदिर आस्था का प्रमुख केंद्र है, जहां श्रावण मास और महाशिवरात्रि जैसे अवसरों पर भारी भीड़ उमड़ती है।
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हालांकि, मंदिर की सबसे अनोखी विशेषता इसकी परंपरा है, जिसमें भाई-बहन को एक साथ दर्शन करने की मनाही है। यह परंपरा न केवल स्थानीय लोगों के बीच प्रचलित है, बल्कि दूर-दराज से आने वाले श्रद्धालु भी इसका पालन करते हैं। इस मान्यता के पीछे कई कहानियां और विश्वास प्रचलित हैं, जो इस मंदिर को और भी रहस्यमयी बनाते हैं।
भाई-बहन के एक साथ दर्शन पर पाबंदी
नारायणपुर शिव मंदिर की इस अनोखी परंपरा के पीछे कई लोक कथाएं और विश्वास जुड़े हुए हैं। स्थानीय लोगों का मानना है कि अगर भाई और बहन एक साथ मंदिर में प्रवेश करते हैं और भगवान शिव के दर्शन करते हैं, तो उनके जीवन में अशुभ घटनाएं हो सकती हैं। कुछ लोगों का यह भी विश्वास है कि इससे भाई-बहन के रिश्ते में तनाव या दरार आ सकती है। इस परंपरा की उत्पत्ति के बारे में कोई स्पष्ट ऐतिहासिक प्रमाण तो उपलब्ध नहीं है, लेकिन स्थानीय बुजुर्गों का कहना है कि यह मान्यता सदियों से चली आ रही है।

कुछ कथाओं के अनुसार, इस मंदिर में कभी एक ऐसी घटना घटी थी, जिसमें भाई-बहन के एक साथ दर्शन करने के बाद उनके परिवार में अनहोनी हुई थी। तब से यह परंपरा शुरू हुई और लोग इसे कड़ाई से मानते हैं। कुछ लोग इसे अंधविश्वास मान सकते हैं, लेकिन स्थानीय समुदाय के लिए यह उनकी आस्था और संस्कृति का अभिन्न हिस्सा है। मंदिर में आने वाले भक्त इस नियम का पालन करने में कोई कोताही नहीं बरतते और अलग-अलग समय पर दर्शन के लिए आते हैं।
Narayanpur Shiv Temple: परंपरा का पालन
नारायणपुर शिव मंदिर में इस परंपरा का पालन सुनिश्चित करने के लिए मंदिर समिति और स्थानीय लोग सक्रिय भूमिका निभाते हैं। मंदिर के पुजारी और कर्मचारी नए आने वाले श्रद्धालुओं को इस नियम के बारे में बताते हैं। खासकर उन अवसरों पर, जब मंदिर में भारी भीड़ होती है, जैसे कि महाशिवरात्रि या श्रावण मास में, इस नियम का पालन कराने के लिए विशेष सतर्कता बरती जाती है। मंदिर के बाहर सूचना पट्ट भी लगाए गए हैं, जो इस परंपरा के बारे में जानकारी देते हैं।
स्थानीय समुदाय इस परंपरा को अपनी सांस्कृतिक विरासत का हिस्सा मानता है। गांव के बुजुर्ग और युवा दोनों ही इस मान्यता को मानते हैं और इसे अगली पीढ़ियों तक पहुंचाने में विश्वास रखते हैं। यह परंपरा न केवल धार्मिक, बल्कि सामाजिक एकता को भी दर्शाती है, क्योंकि यह स्थानीय लोगों को एक साझा विश्वास के इर्द-गिर्द जोड़ती है।