Dhani momos Bhopal:भोपाल के नीलबड़ चौराहे से थोड़ा दक्षिण की ओर, होटल जलसा के पास की बड़ी बड़ी दुकानों के आगे बढ़ते ही भाप में पके पकौड़ों की हल्की-सी खुशबू आपको एक छोटे से ठेले तक ले जाएगी, जिस पर लिखा है धानी मोमोज। जिसे संचालित करती हैं एक महिला—संयमित, शांत और निपुण भाव लिए । वो जिस प्रेम से मोमोज़ परोसती हैं, वही आपको बार-बार लौटकर आने को मजबूर कर देता है।
कहानीस्वाद में छिपे संघर्ष की
उनका नाम है मंजू शर्मा। उनके बारे में पहली बार मैंने एक दोस्त से सुना, जो अक्सर उनके खाने की तारीफ़ करता था। जिज्ञासा हुई, तो हम दोस्त वहाँ गय। मोमोज गरमा गरम, स्वादिष्ट और पर्याप्त मात्रा में थे। लेकिन असली कहानी प्लेट पर नहीं थी।
एक शाम, इंतज़ार करते हुए मैंने उन्हें किसी ग्राहक से फ्लूएंट अंग्रेजी में बातचीत करते सुना। एक व्यस्त बाजार के कोने में यह अप्रत्याशित था।
गणित की शिक्षिका है मंजू शर्मा
मैंने उनकी शिक्षा के बारे में पूछा। उनकी आँखें नम हो गईं।“मैं गणित का कोचिंग संस्थान चलाती थी,” उन्होंने कहा। “मेरे पास ऑनर्स डिग्री है।”
पति करते थे दुबई में नौकरी
उनकी ज़िंदगी 2020 में अचानक बदल गई। उनके पति सागर दुबई में काम कर रहे थे, लेकिन जब कोरोना महामारी आई। मंजू ने उन्हें वापस आने को कहा। उन्होंने जवाब दिया—“मंजू, सत्तर लोग मेरे अधीन काम करते हैं। मैं उन्हें छोड़कर नहीं आ सकता।”
एक हफ़्ते बाद वो कॉल आया, जिसने उनकी दुनिया बदल दी।
उनके पति की कोरोना में देहांत होगया। इसके बाद अवसाद गहराता गया। छह महीने के भीतर उन्होंने अपना कोचिंग संस्थान और एक व्यावसायिक संपत्ति भी खो दी।
ठुकरा दिए बीमा कम्पनी के 80 लाख रुपए
पति की कंपनी और उनकी बीमा पॉलिसी से ₹80 लाख की पेशकश हुई, मगर उन्होंने ठुकरा दिया। “जब उन्होंने बीमा कराया, तो मुझे गुस्सा आया था,” मंजू ने कहा। “उन्होंने कहा था, ये बस फॉर्मेलिटी है। लेकिन उनके जाने के बाद लगा, मैंने कोहिनूर खो दिया है। मैं कैसे पीतल से कैसे जी सकती थी?”
बीमारी और अकेलापन से लड़ती रहीं
डायबिटीज और एक आँख से आंशिक दृष्टि हानि उन्हें रोज़ चुनौती देती है।“मैं अब वैसी नहीं दिखती जैसी पहले थी,” उन्होंने धीरे से कहा। “मैं कभी साहसी और सुंदर थी। पर अब मुझे देखो… जो लोग मुझे पहले जानते थे, जब आज मुझे देखते हैं, तो तरस खाते हैं। मुझे यह अच्छा नहीं लगता। मैं नहीं चाहती कि लोग मुझे असहाय या अभागी समझें।”
उनके शब्द भारी थे, मगर उनमें एक चुपचाप ताक़त थी—यह निश्चय कि दुख उनकी पहचान नहीं बनेगा।
पिता बीजेपी पदाधिकारी फिर भी है आत्मनिर्भर
उनका परिवार—समृद्ध और प्रभावशाली। उनके पिता बीजेपी पदाधिकारी हैं। सब कहते हैं कि वो ठेला छोड़ दें। मगर वो इनकार करती हैं।
समाज और परंपरा से समझौता नहीं
“मैं ब्राह्मण परिवार से हूँ,” उन्होंने कहा। “हमारे समाज में ज़्यादा नियम, ज़्यादा अपेक्षा होती हैं।” उनकी आँखों में गर्व साफ़ झलक रहा था। मैंने पूछा, “आप चिकन मोमोज़ क्यों नहीं बनाती? इससे बिक्री और मुनाफ़ा दोनों बढ़ेंगे।”
वो हल्की मुस्कान के साथ बोलीं—“मैं पंडित हूँ। खाने में भी मैं अपनी परंपरा निभाती हूँ। मैं खाने में लहसुन-प्याज इस्तेमाल नहीं करती।”
बच्चे को गायक बनाना चाहती है
उनका बेटा, जो अब दिल्ली में है, गायक बनने का सपना देखता है।“मैं उसे उसके सपने पूरे करने के लिए सब कुछ दूँगी,” उन्होंने कहा। “एक दिन यह ठेला रेस्टोरेंट बनेगा—उसी नाम से। मैं खोई हुई चीज़ें फिर से बनाऊँगी। और जहाँ भी सागर हैं, मुझे उम्मीद है वो देख रहे होंगे। मैं उन्हें गर्व महसूस कराऊँगी।”
कई जिन्दगी तवाह कर गया कोविड
कोविड ने न सिर्फ़ जानें लीं; इसने आजीविका और भविष्य को भी तहस-नहस कर दिया। पूरे भारत में, मंजू शर्मा जैसे कई लोग हैं जो शिक्षित, सक्षम हैं, और अचानक उन्हें नए सिरे से शुरुआत करने के लिए मजबूर होना पड़ा। उनका ठेला न केवल उनके साहस का प्रमाण है, बल्कि बेहतर सहयोग की ज़रूरत की भी याद दिलाता है: सुलभ लघु-व्यवसाय ऋण, मानसिक स्वास्थ्य देखभाल और कौशल पुनरुद्धार कार्यक्रम।
Dhani momos Bhopal:भोपाल में रहने वालों के लिए सबसे आसान एकजुटता का तरीका यही है कि धनी मोमोज़ जाएँ—एक प्लेट खाएँ, दो शब्दों का आदान-प्रदान करें और उस हौसले को पहचानें, जो एक ठेले से भी बड़ी कहानी कहता है।
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